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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती

आहुति

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राधेश्याम जी ने दूसरा विवाह किया था, संभवतः हरिहर की देखभाल के लिए ही। किंतु इस समय कुन्तला को हरिहर से अधिक राधेश्याम की देखभाल करनी पड़ती थी। उनकी देखभाल से ही वह परेशान हो जाती, इतनी थक जाती कि उसे हरिहर की तरफ आँख उठाकर देखने का भी अवसर न मिलता।
कुन्तला के असाधारण रूप और यौवन ने तथा राधेश्याम जी की ढलती अवस्था ने उन्हें आवश्यकता से अधिक असावधान बना दिया था।

बुरा-भला कैसा भी काम हो, सबकी एक सीमा होती है। राधेश्याम के इस अनाचार से कुन्तला को जो मानसिक वेदना होती, सो तो थी ही; इसका प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर भी पड़े बिना न रहा | कुन्दन की तरह उसका चमकता हुआ रंग पीला पड़ गया, आँखें निस्तेज हो गईं। छै महीने की बीमार मालूम होती। वैसे ही वह स्वभाव से सुकुमार थी। अब चलने में उसके पैर काँपते, सदा हाथ-पैर में दर्द बना रहता, जी सदा ही अलसाया रहता। खाट पर लेट जाती तो उठने की हिम्मत न पड़ती। कुन्तला की इस अवस्था से राधेश्याम अनभिज्ञ हों, सो बात न थी। उन्हें सब मालूम था। कभी-कभी ग्लानि और पश्चात्ताप उन्हें भले ही होता, किंतु लाचार थे।

कहते हैं, ढलती उमर का विवाह, और दूसरे विवाह की सुंदर स्त्री मनुष्य को पागल बना देती है। था भी कुछ ऐसा ही।
कुन्तला अपने जीवन से कुछ बेजार-सी हो रही थी।
किन्तु वह राधेश्याम को किस प्रकार रोक सकती थी? वह तो उनकी विवाहिता ठहरी। सात भाँवरे फिर लेने के बाद घनश्याम को उसके शरीर पर पूरी मोनॉपली(Monopoly)-सी मिल चुकी थी न।

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